“चुप्पी”
चुप्पी आपकी कुछ राज कह रही है।
बंद कमरों सा कुछ काज कह रही है
बोलना पड़ेगा तुम्हें आखिर एक दिन।
उस वक्त के सफर का साज कह रही हैं
जुबान ही तो मान अपमान है प्यारे।
बोलने की बस वह लाज कह रही है।
सन्नाटा छाया चेहरे पर क्यों तुम्हारे।
नजरे ए मानो ज्यों बाज कह रही है।
फिर भी गजब अदा है साहब तुम्हारी।
कमबख्त महफिल का ताज कह रही है ।
प्रशांत शर्मा सरल