चुन लेना राह से काँटे
चुन लेना राह से काँटे….
चुन लेना राह से काँटे
हवायें भी हिलोर देना
द्वारे चंदा भी चमचमायेगा
प्रेम छवि हिय में उकेर देना
क्षीण हुई कंटिल पथ पर चलते
साँझ कि सी बरबस यूँ ढलते
बहता रक्त क्षत कदमो से
पौंछकर मरहम लगा देना
प्रेम तो इक स्वप्न मात्र सा
उज्जवल ,रति,स्नेह बयार यूँ
सुनहरा झिलमिल अजब सा ही
स्वप्न तो अब दिखला जाना
नभ में दमकती आभा होगी
सतरंगी इंद्रायुध सजा होगा
रवि की वो प्रखर उजियारी
साँझ की वो अजब सी लाली
गिनना चाहती नभ के तारे
एक नही अनगिनत अब सारे
टाँक वो सब सजीले सितारे
सतरंगी इक चुनर सजा देना
दहकते अंगार विकल से हो
आँचल से अब विमुख करना
नवागत स्वर्णिम कल होगा
स्वप्निल नयनों में पल होगा।।