चुनाव
चुनाव
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देश में लोकतंत्र का चुनाव है,
कहीं खुशी तो कहीं तनाव है।
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कोई किसी को मत अपना दे,
किसी पर नही कोई दबाव है।
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दल बदलू तोड़ विश्वास रहे है,
खातिर अपने करे बदलाव है
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हार और जीत के बाजार में,
देखें कैसे गिरते-चढ़ते भाव है
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शोर मचा मुल्क में चारों ओर,
लगता है बुद्धि का अभाव है।
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हर हाथ तरसता है काम को,
आसमां छूते वस्तु के भाव है।
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मरहम पट्टी नही है गरीब को,
सड़ते रीसते बदन के घाव है।
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मंदिर-मस्जिद व्यर्थ के झगड़े,
सतामद में चूर मूंछ के ताव है।
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ज़हर परोस रहे,जो इंसानों में,
जान लो दिल से न झुकाव है।
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नफ़रत की है ये आंधी “जैदि”,
ये बहेगी जब तलक बहाव है।
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शायर:- “जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”