*चुनाव में उम्मीदवार (हास्य व्यंग्य)*
चुनाव में उम्मीदवार (हास्य व्यंग्य)
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चुनाव आने पर राजनीतिक व्यक्ति के लिए चुनाव में खड़ा न हो पाना बहुत मुश्किल होता है । उसके शरीर का अंग-प्रत्यंग रोम-रोम चुनाव में खड़े होने के लिए व्याकुल होता है । अंतर्मन से यही पुकार आती है कि चुनाव आ गया है। अब तू खड़ा हो जा ! व्यक्ति थोड़ा अपने मन को समझाता भी है तो मन दोबारा कहता है कि यह मौका अगर चूक गया तो पॉंच साल बाद आएगा । राजनीतिक व्यक्ति पॉंच साल तक इंतजार नहीं कर सकता । कई लोग तो वैसे ही अपनी परिपक्वता आयु की दहलीज पर खड़े होते हैं। उनके लिए पॉंच साल इंतजार करना और भी मुश्किल हो जाता है । नई उम्र के लोगों के लिए भी चुनाव लड़ने का जोश हिलोरें मारता है । वे कहते हैं कि यही तो उम्र है। चुनाव में खड़ा हो जा !
कई लोगों को चुनाव में टिकट उस पार्टी से मिल जाता है जिस पार्टी के टिकट के लिए वह आवेदन करते हैं । कई लोगों को उस पार्टी से टिकट नहीं मिलता तो वह दूसरी पार्टी से टिकट के लिए आवेदन करते हैं । कई बार उन्हें दूसरी पार्टी से टिकट मिल जाता है। कुछ लोगों को कहीं से भी टिकट नहीं मिलता । लेकिन फिर भी वह लोग खड़े होते हैं ।
कुछ लोग चुनाव में खड़े होने की हवा बांधते हैं और चार लोगों का इंतजार करते हैं कि वे उनके पास आऍं और कहें कि भाई साहब ! आप चुनाव में खड़े मत होइए । तब वह चुनाव में खड़े होने का अपना इरादा बाकायदा स्थगित करते हैं । कुछ लोग पर्चा भरने के बाद नाम वापस लेते हैं। उनका पक्का इरादा होता है कि चुनाव में खड़े अवश्य होना है। फिर चाहे भले ही नाम वापस लेना पड़े । लेकिन चार लोगों को अपने दरवाजे पर लाकर मनुहार करने के लिए खड़ा अवश्य करेंगे।
चुनाव में जो लोग खड़े होते हैं, उनमें से बहुतों को पहले से पता होता है कि वह नहीं जीत पाएंगे। लेकिन फिर भी खड़े होते हैं। सोचते हैं, थोड़ा नाम तो होगा।
कुछ लोग अपने बारे में गलतफहमी लेकर चलते हैं । उनकी यह गलतफहमी मतदान के बाद समाप्त हो जाती है और फिर वह दोबारा राजनीति की तरफ मुड़कर नहीं देखते हैं । चुनाव में कई बार जिसकी हवा बनती है, वह नंबर दो पर रह जाता है । जिसको लोग समझते हैं कि यह नंबर तीन पर चल रहा है, वह कई बार नंबर एक पर पहुंचकर बाजी मार लेता है।
जनता को अर्थात मतदाताओं को चुनाव में उम्मीदवारों को वोट देते-देते इतना लंबा समय बीत चुका है कि अब इस विषय में एक तरह से उनका अध्ययन संपूर्ण हो चुका है। उन्हें मालूम है कि किस उम्मीदवार को वोट देना है। किस पार्टी को जिताना है। कौन सा उम्मीदवार आए तो उससे किस प्रकार से बात करनी है । मतदाता जानते हैं कि उम्मीदवारों से क्या उम्मीद की जानी चाहिए । जो लोग आठ-दस बार चुनाव में वोट डाल चुके हैं, वह परिपक्व हो जाते हैं । नेता से ज्यादा तो अभिनय करना उन्हें आता है ।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
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