चुनाव फिर आने वाला है।
चुनाव फिर आने वाला है,
वादे के घोड़े फिर दौड़ने वाला है।
कुछ खट्टे कुछ मीठे,
कुछ कड़वे झूठ के पुड़िया छुटने वाला है।
चुनाव फिर आने . . . . . .
हाथ जोड़े घर घर दरवाजे पे,
मिलेंगे रोज नये नेता।
मैं ये करूंगा, वो करूंगा,
घोषणाओं को लम्बी पर्ची,
बेझिझक ही बोल देता।
बिना सोचे बिना विचारे,
वोट अगर तुम डाले।
फिर पछताएं होत क्या,
विपरीत बुद्धि विनाश काले।
चिकनी चुपड़ी मीठे मीठे,
झूठ का पुलिंदा फिर बनने वाला है।
चुनाव फिर आने . . . . . .
कुर्सी की खातिर उतरे हैं जंग में ,
पहने हैं सफेद पर रहते हैं अलग रंग में।
जाति और धर्म के नाम,
बरगलाना हैं उनका काम,
जनता दिखती है फिर उनके हुड़दंग में।
कहीं मान तो कहीं अपमान,
सह लेते हैं हंसते हंसते।
कहीं मांग कहीं खींचें टांग,
चल देते हैं रसते रसते।
कंबल साड़ी दारू से,
जैसे तैसे चुनाव फिर जीतने वाला है।
चुनाव फिर आने . . . . . .
जनता के ही हाथ में है,
सरकार बनाने का अधिकार।
किसे वोट देना है किसे नहीं,
किसे बैठायेगी आकाश में, किसे जमीं ,
सोच समझ कर ही चलायें ये हथियार।
शासन में उन्हें ही बैठाना है,
जो सच्चे अच्छे और हो समझदार।
जाति धर्म और संप्रदाय देखकर,
ऐरे-गैरे को वोट दिया तो खबरदार।
तुम्हारे बहुमूल्य वोट से,
सरपंच विधायक सांसद फिर बनने वाला है।
चुनाव फिर आने . . . . . .