चुनाव: कुछ दोहे
चुनाव: कुछ दोहे
// दिनेश एल० ” जैहिंद”
राजनीति से चिढ़ हुई, खत्म हुए हैं चाव /
पाँच वर्ष की चोट ले, सहलाए अब घाव //
नेताओं की आँख में, रहा नहीं वो भाव /
प्रजा को सुहाते कहाँ, नेताओं के दाव //
जनता चाहे कुछ कहे, इसमें पेंच – घुमाव /
अपनों में ही लड़ पड़े, आता जब भी ताव //
रिश्ते-नाते सब मिटे, रण-स्थल हुआ चुनाव /
मन के भाव बदल गए, खुद से हुआ दुराव //
चुन – चुन जब चुनाव करें, चूना लगे गुलाल /
पट पीछे चूना यही, हृदय को दे मलाल //
दंगल चुनावी देख मैं, घबराया हूँ यार /
बीवी से उतना नहीं, कुर्सी से है प्यार //
इस कुर्सी के प्रेम में, नेता जो पगलाय /
कुटुम्ब जीते-जी मरे, दर – दर ठोंकर खाय //
बडे – बड़े हैं लड़ रहे, तू झगड़ा ले देख /
रणजीत कूटनीति है, छुपी है मीन – मेख //
नीच, कपटी, धूर्त, छली, डाले सबै दुकान /
अगर जाल में जो फँसे , जाएगी फिर जान //
नीर और इस तेल का, हुआ नहीं है मेल /
एक वोट तू डाल आ, बेच बाद में तेल //
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दिनेश एल० “जैहिंद”
12. 04. 2019