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16 Dec 2021 · 1 min read

चुनाव: कुछ दोहे

चुनाव: कुछ दोहे
// दिनेश एल० ” जैहिंद”

राजनीति से चिढ़ हुई, खत्म हुए हैं चाव /
पाँच वर्ष की चोट ले, सहलाए अब घाव //

नेताओं की आँख में, रहा नहीं वो भाव /
प्रजा को सुहाते कहाँ, नेताओं के दाव //

जनता चाहे कुछ कहे, इसमें पेंच – घुमाव /
अपनों में ही लड़ पड़े, आता जब भी ताव //

रिश्ते-नाते सब मिटे, रण-स्थल हुआ चुनाव /
मन के भाव बदल गए, खुद से हुआ दुराव //

चुन – चुन जब चुनाव करें, चूना लगे गुलाल /
पट पीछे चूना यही, हृदय को दे मलाल //

दंगल चुनावी देख मैं, घबराया हूँ यार /
बीवी से उतना नहीं, कुर्सी से है प्यार //

इस कुर्सी के प्रेम में, नेता जो पगलाय /
कुटुम्ब जीते-जी मरे, दर – दर ठोंकर खाय //

बडे – बड़े हैं लड़ रहे, तू झगड़ा ले देख /
रणजीत कूटनीति है, छुपी है मीन – मेख //

नीच, कपटी, धूर्त, छली, डाले सबै दुकान /
अगर जाल में जो फँसे , जाएगी फिर जान //

नीर और इस तेल का, हुआ नहीं है मेल /
एक वोट तू डाल आ, बेच बाद में तेल //

=============
दिनेश एल० “जैहिंद”
12. 04. 2019

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 745 Views

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