चुनाव आते ही….?
चुनाव आते ही….?
चुनाव आते ही सभी राजनीतिक पार्टियां अपने अपने तरह से चुनाव प्रचार करने लग जाती हैं। अधिकतर पार्टियां साम, दाम, दंड, भेद राजनीति की चारों युक्तियों का प्रयोग प्रचार करने में करती हैं। इसके साथ ही जनता से तरह-तरह के झूठे और दिखावे वाले वायदे किए जाते हैं। लेकिन चुनाव जीत जाते ही यह जो वादे चुनाव से पहले किए जाते हैं क्या वास्तव में वे पूरे होते हैं? या किए जाते हैं, यह एक सोचने का विषय है।
आज ऐसा नहीं है, कि जनता समझदार नहीं है। आज जनता जागरुक हो चुकी है, वह अच्छा- बुरा, झूठा- सच्चा सब कुछ समझती है। पहले दौर अलग था जब हवा हवाई वादे करके जनता से उसका कीमती वोट ले लेते थे। लेकिन आज संचार और तकनीकी क्षेत्र में प्रगति होने के कारण सोशल -मीडिया, इंटरनेट, फेसबुक, व्हाट्सएप, टि्वटर, इंस्टाग्राम आदि के माध्यम से जनता काफी हद तक अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुई है और वह सब समझती है, साथ ही वह 5 साल बीतने पर नेता से उसका हिसाब भी अच्छे प्रकार से लेती है।
अब बात यह आती है, कि हम अपना कीमती वोट किस प्रकार दें और किसे दें। यह सोचने का विषय है, क्योंकि आज भी अधिकतर भोली-भाली जनता अनपढ़ है, अशिक्षित है। जिसकी वजह से वह अपने ईमानदार भावी उम्मीदवार को चुनने में गलती कर जाती है। अगर वोट के बारे में बात की जाए तो हमें अपना वोट बहुत ही सोच समझ कर देना चाहिए और ऐसे व्यक्ति को देना चाहिए जो काफी हद तक अपने किए गए वादों पर खरा उतरा हो या उतर सके, जो शिक्षा को सबसे पहले वरीयता दें,( क्योंकि शिक्षा ही सवालों को जन्म देती है।) साथ ही सुरक्षा देने वाला हो, रोजगार देने वाला हो, अस्पताल बनवाने वाला हो, जिस के शासनकाल में बलात्कार, भ्रष्टाचार, लूट- खसोट-, रिश्वतखोरी, भाई भतीजावाद, आतंकवाद जैसे कोई भी गलत कार्य के लिए कठोर से कठोर सजा सुनाई जा सके। जिससे कोई भी ऐसा कार्य करने से पहले सौ बार सोचे अर्थात शासन प्रशासन सख्त हो। इसके साथ साथ वह देश के सर्वोच्च कानून संविधान को मानने वाला हो और उसी के अनुसार कानून व्यवस्था को बनाए रखें। जिसकी सोच वैज्ञानिक तार्किक चिंतन पर आधारित हो, मानव मनोवैज्ञानिक हो और महापुरुषों की विचारधारा को मानने वाला हो,( क्योंकि कोई भी महापुरुष किसी एक विशेष जाति का नहीं होता वह सभी का होता है, क्योंकि वह सभी के लिए कार्य करता है।) वह दूरदर्शी, इंसानियत को मानने वाला, ईमानदार, स्पष्ट छवि वाला, सतर्क जागरूक, शिक्षित और अंधविश्वास और पाखंड वाद से दूर रहने वाला हो। इसके साथ ही हमें यह भी ध्यान देना चाहिए कि उसका पिछला रिकॉर्ड किस प्रकार का रहा है और उसने इस देश और यहां की जनता के लिए किए गए कार्य को जमीनी स्तर पर किया है या नहीं। मैं मानता हूं कि उपरोक्त गुण सभी में नहीं हो सकते कि परंतु काफी हद तक हो सकते हैं। जो नेता या उम्मीदवार उपरोक्त गुणों को काफी हद तक रखता हो, करने का प्रयास एवं करें अपनाए। उसी को हमें अपना बहुमूल्य मत देना चाहिए।
प्राचीन काल में जब राजतंत्र था तब भी कहा जाता था, कि श्रेष्ठ राजा वही होता है, जो प्रजा के लिए श्रेष्ठ कार्य करें जो प्रजा के हित में हो, जो प्रजा के हित को ही सर्वोपरि समझे। ठीक इसी प्रकार यह बात आज लोकतंत्र पर भी लागू होती है। बस अंतर इतना है, कि आज का राजा जनता द्वारा चुना जाता है, जबकि राजतंत्र में ऐसा नहीं था। लेकिन राजा द्वारा किए गए जो पहले होते थे आज भी कार्य होते हैं वह आज लोकतंत्र में भी किए जाते हैं परंतु कहीं ना कहीं भोली भाली जनता को बहला-फुसलाकर कीमती वोट लेकर अपने द्वारा किए गए वादों को भुलाकर रफूचक्कर हो जाते हैं और अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए कुकृत्य का सहारा लेते हैं और अपने मार्ग से भटक जाते हैं।
आज जनता के माध्यम से राजा चुना जाता है। आज जनता में ही लोकतंत्र की सर्वोत्तम पावर निहित है। लेकिन ऐसे राजा का क्या मतलब जिसके शासनकाल में उसी की जनता पर तरह तरह के अत्याचार, बलात्कार होते हों, जनता भ्रष्टाचार का शिकार हो और जनता को सरेआम मारा- जाता हो केस लगाए जाते हो, अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने वालों पर देशद्रोह का मुकदमा लगाया जाता है। किसके शासनकाल में सही को सही और गलत को गलत ना ठहराया जा सके, जिसके शासनकाल में देश के सर्वोच्च कानून संविधान की धज्जियां उड़ाई जाती हो, जहां एक अनपढ़ और कम पढ़ा लिखा व्यक्ति शासन का मालिक हो। तो वह देश कभी भी तरक्की नहीं करेगा और दिनों -दिन अवनति की ओर जाएगा।
मैं किसी भी राजनीतिक पार्टी के पक्ष और विपक्ष में नहीं हूं परंतु आज परिस्थितियां कुछ और हैं। प्रत्येक उम्मीदवार अथवा नेता को चाहिए कि वह अपने किए गए वादों पर खरा उतरे, देश की जनता और देश हित में कार्य करें। वह सभी को समान दृष्टि से देखें, इंसानियत को सर्वोपरि समझे, शिक्षित, ईमानदार और मानवीय गुणों को अपनाते हुए जनता की सभी जरूरतों को ध्यान में रखें और उसे पूरा करने का भरसक प्रयास करें। साथ ही जनता को भी अपने विवेक से इसी प्रकार का भावी नेता चुनना चाहिए, अपना कीमती वोट देते हुए एक उम्मीदवार और नेता का अच्छी प्रकार से पूर्व और भविष्य को ध्यान में रखते हुए मूल्यांकन करते हुए जात-पात, ऊंच-नीच धर्म आदि को न देखते हुए अपना बहुमूल्य मत देना चाहिए।
अगर ऐसा होता है तो मुझे पूर्ण विश्वास है, कि हमारा देश तरक्की की राह पर अग्रसर होगा और इसे विकसित और विश्व गुरु बनने से कोई नहीं रोक सकता।
लेखक – दुष्यन्त कुमार
(तरारा)