चुनावों का समय
* गीतिका *
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निकट जितना चुनावों का समय है आ रहा देखो।
हृदय हर रोज नेता का सिकुड़ता जा रहा देखो।
भलाई के किये कुछ काम है जिसने मगर फिर भी,
उसे किस बात का डर है अभी भी खा रहा देखो।
कसा जबसे शिकंजा है चुनावों में प्रत्याशी पर,
कदम हर फूंककर ही वो बढ़ा अब पा रहा देखो।
चढ़ा कुछ पर नशा सत्ता उतरता ही नहीं लेकिन,
समय उनको सबक भी है बहुत समझा रहा देखो।
नहीं जो मानते प्रभु राम का अस्तित्व था भू पर,
मगर वह भी बुझे मन से नहा गंगा रहा देखो।
भुलाकर दुश्मनी सारी गले मिलने लगा नेता,
कभी गाली दिया करता कसीदा गा रहा देखो।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य,२८/०३ /२०१९