चुनावी मौसम
धूप प्रचंड में चल रहे
झेलते लू के थपेड़े,
चुनावी मौसम आ गया
हाथ दोनों जुड़ चुके।
दादा दादी के मधुर
मनोहर उद्बोधन,
कक्का के हाल चाल ले
बाँटते हलुआ सोहन।
पर्याय बन चुके आज
परोपकार के सब,
लग रहा इस चुनाव बाद
गरीबी हटके रहेगी अब।
कही नोट के बंडल
तो कहीं सोमरस बंट रहा,
छुटभैयों का तो जीवन
माल से तर हो रहा।
चुनाव आयोग का डेटा
सौ करोड़ नित्य पकड़ रहे,
यही अगर गति रही बनी
बेशक गरीबी हट कर रहे।
सफेदपोश एक है कहता
परेशान क्यों हो रहे?
गरीब को ही मिटाकर हम
गरीबी को दूर किये देंगे।
अरे जहाँ सैकड़ो टन भोजन
नित्य फेके जा रहे,
उस देश मे गरीबी अपनी
गिरहबान में रहे।
सब फिजूल की बाते है
दूसरे ने कहा
बेरोजगारी भला इस देश
में है कहीं क्या ?
खोजे मिलते नही आज
मेहनती मजदूर है,
कामचोरों के लिए सदा ही
सदा ही दिल्ली दूर है ।
अगर सरकारी नौकरी ही
है बेरोजगारी का पर्याय,
निश्चित जानो कयामत तक
यह दूर न होगी भाय।
चाप के खाना मिल रहा
ऊपर से पैसा बैंक में सीधे,
उँगली क्यों टेढ़ी करना
जब निकल रहा है घी सीधे।
गली गली में चारो ओर
जहाँ गुरु ही मिलते है
व्यापक शिक्षा की बात वहाँ
बेमानी से लगते है।
स्वास्थ्य एक मुद्दा है ऐसा
रामभरोसे चलता है,
हानि लाभ जीवन मरण
सब विधि के वश में होता है।
हुई गरीबी, शिक्षा,स्वास्थ्य
और बेरोजगारी की बात,
आओ कर ले भ्रष्टाचार
पर भी एक कुठाराघात।
अगर ये भ्रष्टाचार नहीं तो
जिससे कितनोंके घर चलते है।
प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से
कितनो को अवसर देते है।
इसके पैसे से ही कितने
नित व्यापार पनपते है,
निर्मेष ये चुनावी मौसम है
कितनो के दुःख हारते है।
निर्मेष