चुनावी दोहे
परधानी के रंग में, डूबा है हर गांव।
वो भी अब कोयल बनें, करें जो कांव कांव।।01
कल तक जो पूछे नहीं, धरे आज हैं पांव।
छप्पर तोड़ गरीब का, दिलवाएंगे छांव।।02
कैसे हम ये मान लें, करें आज विश्वास।
सांप कोबरा है खड़ा,नही करेगा नाश।।03
नेता ऐसा चाहिए, रखे नही मन भेद।
सबकी जो बातें सुने,लाख रहे मत भेद।।04
चर्चा यही चुनाव की, और यही है बात।
मुर्गा या बकरी कटे, कटे कहीं इस रात।।05
हरिश्चंद्र सब आज हैं, यहाँ न कोई चोर।
खाल ओढ़कर शेर का, गीदड़ करते शोर।।06
बनना है परधान तो, सुनो”जटा” तुम आज।
छोड़ो बात गरीब की,करो बड़ों के काज।।07
भूतकाल को देखकर, दीजै अपना वोट।
जनता का सेवक बने, पहुंचाए न चोट।।08
आज अभी सब सोच लें, करना है मतदान।
दारू, पैसा त्याग कर,खुद ही बनें महान।।09
पांच साल के बाद ही, आता यह त्यौहार।
बिक न जाना वोटर तुम, लेकर एक हजार।।10
✍️जटाशंकर”जटा”