[[[[चुनरिया गीत]]]]
चुनरिया गीत
// दिनेश एल० “जैहिंद”
ओढ़ चुनरिया नारी भी कितनी सुधर हो जाती।
पहन चुनरिया धानी ये धरती कितनी मुस्काती।।
हरी, गुलाबी, काली-काली,
नीली, पीली और मतवाली।।
डाल चोली तन पर छोरियाँ,
घूमती हैं जब गली-गलियाँ।।
घर, आँगन और गली-कुचियां कितनी हर्षातीं।
ओढ़ चुनरिया नारी भी………………………
फैल जाती गहरी हरियाली,
कुसुम खिलते डाली-डाली।।
हँस-हँसके झूमतीं डालियाँ,
गीत सुनातीं सुन्दर वादियाँ।।
बाग, बगीचे व खेत-मिट्टियाँ कितनी लुभातीं।
ओढ़ चुनरिया नारी भी……………………..
मोर, पपीहा, तोता, मैना,
लगे सुहावन इनके बैना।।
झूमें, नाचें, गाएं, बजाएँ,
बड़े मनोहर गीत सुनाएँ।।
सारे जन्तु और ये पंछियाँ कितनी चहचहातीं।
ओढ़ चुनरिया नारी भी……………………..
घन घनेरी काली चुनरियाँ,
ओढ़ बरसाए जल धारियाँ।।
भर जाएं नद और नालियाँ,
नाचे-कूदें बच्चे – बच्चियाँ।।
सावन के दिन और रतियाँ कितनी सुहातीं।
ओढ़ चुनरिया नारी भी……………………
लाल चुनर ओढ़ नाचे बाला,
बाल गोपाल लागे नंदलाला।।
रंग-बिरंगी चुनरी मन भाए,
नर-नारी, बाल-वृद्ध लुभाए।।
हरी, बैंगनी, सफेद चुनरियाँ ये युवतियाँ लातीं।
ओढ़ चुनरिया नारी भी………………………
पहन चुनरिया धानी ये धरती कितनी मुस्काती
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दिनेश एल० “जैहिंद”
26. 07. 2019