चीर हरण!
जब कभी कहीं भी,
हो चीर हरण,
धृतराष्ट्र का ,
होगा वर्णन,
किया किसने,
चीर हरण,
वह चाहे,
रहे हों दुशासन,
या तो दुर्योधन,
या फिर कोई,
और हो वो दुर्जन,
उनकी चर्चा होती है,
लेकिन उनसे ज्यादा,
उनकी होती है,
जिनके हाथों में उस देश की,
सत्ता कायम रहती,
और यह यक्ष प्रश्न,
आज भी मौजूद है,
क्यों चुपचाप हैं,
पितामह भीष्म,
कुल गुरु कृपाचार्य
और आचार्य द्रोण,
क्या सिर्फ,
महात्मा विदुर ही,
करें प्रतिकार,
क्या किसी और के पास,
नहीं है यह अधिकार,
आज भी उनके समकक्ष,
क्यों मौन धारण किए हैं,
और सिर्फ एक आवाज,
जो आज भी सुनाई दे रही है,
सत्ता की चकाचौंध ने,
उसे भी अंधा बना रखा है,
और प्रतिरोध का स्वर,
प्रतिपक्ष से ही उठता रहेगा!
इधर कन्हैया जिन्हे समझते रहे,,
वही शकुनी की चाल गये!!