चीर हरण
चीर हरण
सार छंद १६+१२
दुर्योधन ने दासी कहकर,
कडुवे वचन सुनाये।
जंघा पर इसको बिठलाओ,
सुनकर सब शरमाये।
वस्त्र हीन इसको कर डालो,
कर्कश शब्द ढहाए।
मूक हुए दर्शक सब बैठे,
ऊपर बांह चढ़ाए।
पाकर यह आदेश भ्रात का
दु:शासन उठ आया।
बेवश जो थी हुई द्रौपदी
उस पर हाथ बढाया।
केश खींच के दु:शासन ने
अबला समझ घसीटा।
भरी सभा में सबके सम्मुख
द्रुपद सुता को पीटा।
लगा खींचने साड़ी को जब,
तिल तिल बढती जाती।
मौन सभी बैठे थे लेकिन,
जो सब उसके नाती।।
बोल सके नहिं कुछ भी सारे,
समुझ न कुछ भी आया।
देखि सभा का घटना प्रक्रम,
दिल उनका घबराया।।
त्राहि त्राहि कर रहे मूक हो,
द्रुपद सुता यूं बोली।
चूड़ी पहनो महाबली अब,
अपनी चुप्पी खोली।
द्रोण पितामह कृपाचार्य सब,
भीगी बिल्ली बैठे।
बोल न पाए एक शब्द भी,
जो रहते थे ऐंठे।।
आर्तनाद सुन द्रुपद सुता का,
कान्हा दौड़े आए।
भक्त उन्हें अपने से प्यारा,
अतुलित चीर बढाए।
दिव्य मनोरम दृश्य सभा का,
लखकर मन हरसाया।
हर्षित मन से सभी सुरों ने,
पुष्पगुच्छ बरसाया।