चीरहरण हरियाली का
?चीरहरण हरियाली का ?
हम अपने भौतिक विकास हित, वध करते वनमाली का।
हर पराग मधुवन का, करते चीरहरण हरियाली का।।१।।
नदियाँ दूषित हुईं, छिन गई मोहक हंसी किनारों की,
गायब दुनियां तालाबों की, उन नन्हें मछुआरों की;
वर्षा में प्यारे मदमाते नाले भूले इठलाना,
छप- छप करते बच्चों के संकोचहीन संसारों की;
हरे साग हर लिये, न आया ख्याल अदोष जुगाली का।
हर पराग मधुवन का, करते चीरहरण हरियाली का।।२।।
कैसे बुद्धिमान हम काँटे पथ में खुद बिखराते हैं,
खान-पान सब दूषित करते, मूर्ख बने इतराते हैं।
कुदरत की आज़ादी छीनी, खुद भी तो परतंत्र बने;
जीवन देकर मौत खरीदी, फिर भी समझ न पाते हैं।
मृत भोजन करने को दौड़े, ख्याल न आया थाली का।
हर पराग मधुवन का करते चीरहरण हरियाली का।।3।।
पर्यावरण प्रदूषण के आयाम बढ़ाते चले गये,
जलदूषित है, वायु प्रदूषित, मृदा आदि सब छले गये;
भोगमयी सा योग हो गया, रक्षण का बस अभिनय था,
जीवनदायक सभी तत्व बस तृषा-तैल में तले गये।
प्रकृति बुलाती सुनें न हम सब, शोर मचा बस ताली का।
हर पराग मधुवन का करते चीरहरण हरियाली का।।4।।
‘सत्यवीर’ आन्दोलित जगती, भोग रोग बन जायेंगे,
नहीं संतुलन सीखा हमने, हमीं स्वयं पछतायेंगे,
अपने चक्रव्यूह में फँसकर, चलो कहाँ तक जाओगे?
जीना सीखो कुदरत के संग, शुभ दिन बहुरे आयेंगे।
एक यही उद्घोष कि पालन करें सदैव प्रणाली का।
हर पराग मधुवन का करते चीर हरण हरियाली का।।5।।
✍ अशोक सिंह सत्यवीर