चिर-प्रणय
चिर-प्रणय
हे परम काल शिव!
हे प्रणव में प्रणय के आत्म स्वरूप
हे मंगलाचरण नाद के स्वस्तिमय सामवेद।
अपर्णा का अपराजिता व्रत
स्थावर जंगम में अलौकिक
आवाहन करती
दिव्य बालिका का अखंड स्तवन
कहीं तो आपके अगम्य अनादि
अमोघ हृदय को छू गया होगा।
उसके प्रणय में सिर्फ आपमें विलय था
कामना थी आपको अपना
स्वामी सिद्ध करने की।
उसकी सुकोमल स्वरलता
में बिधे स्तवन
कैसे न खींचते तुम्हें अपनी ओर।
आप तो नाद के रचयिता है
सारे छंद आपके ही प्रतिरूप है।
आप से ही उठते है भयंकर गर्जनाएँ।
संगीत और शब्द के स्वरूप
आपसे ही प्रकटे हैं।
शैलसुते की चिरप्रवाही
अदम्य कामना से आप
खिंचे आये ।
उसकी चिरयौवन चिन्मय
चिदम्बरा आसक्ति में
आपके तांडव और नटराज और महाकाल को भी समर्पण करना पड़ा।
उज्ज्वल ज्योतिर्मय कर्तव्यरूढ़ जीवंत
आपका युगल प्रणय इस
समग्र सृष्टि का प्रथम बीज है।
आज इस साहचर्य दिवस पर
सभी व्रती सहव्रती सुषुम्नाओं
के अंतस में उसी बीज का नियमन है।
सुशील शर्मा