“चिराग”
रात भर जलता रहा घर मेरे चिराग,
खुद अंधेरों से जूझता रहा।
औरों को देता रोशनी,
खुद जलता रहा।
बहुत नही है अमीर चांद के आगे,
पर चांद भी चला जाता अमावस के हाथ मे।
छोटा चिराग माँगता रहा तेल बार-बार,
और खुद तपता रहा रात भर बार-बार।
चांद को तारों का भी साथ मिला,
पर चिराग रात में तन्हा ही रह गया।
चाँद को मिलती रही चांदनी रात भर,
पर चिराग को कालिमा मिलती रही।
दिल के बड़े हैं चिराग,
जो बुझ-बुझ के भी जलते रहें।
लौ भले बुझते रहे,
पर आंधी तूफ़ां से लड़ते रहे।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव।
प्रयागराज✍️