चिरंतन सत्य
आज गांव के
सारे बच्चे चहकें
चिड़िया छोड़ कर खलियान
कुछ समय
मेरे गांव में आ जाओ तुम
बर्फ से ढके उत्तुंग शिखर
छोड़ अकेले की शीतलता
मेरे अंतस में आ जाओ
और बिखेर दो अपनी ठंडक
ताकि ईर्ष्या द्वेष की ज्वालाएं
हो जाएं शांत
हमेशा के लिए
चंचल नदिया
आओ
आज
शिथिल , अकर्मक युवाओं के पास
हो सकें वे सतत क्रियाशील
हो सकें आशावान तुम्हारी तरह
हे !अमराई की सावनी महक
महको जी भर आज
ताकि महक सकें
मानव के मानव से रिश्ते
मोर
तुम जंगल से उतर कर
आ जाओ हमारे बीच
सीख लेंगे हम
अनूठी नृत्य भंगिमाएं तुमसे
और
सीख पाएंगे
किस तरह
सात रंग मिलकर
बन जाते हैं एक रंग
प्रेम का
बंधुत्व का, त्याग का
और
आत्मीयता का
अंतरिक्ष की उल्काओ
टकराओ मुझसे आज
तीव्र आवेग के साथ
ताकि
टूट जाए मेरा ‘मैं’ होने कठोर कवच
है जो मेरे चारों ओर
चूर-चूर हो बिखर जाए
अनंत शून्य में हो जाए विलीन
और फिर
हो जाए मेरा तुमसे साक्षात्कार
साकार हो जाओ तुम
मेरे शाश्वत निराकार !
चिरंतन सत्य!!