चिन्तन
चिन्तन करने लगा हूं मै
उस जहान का
लौटा नही जहां से कोई
मै उस आसमान का ।
चिन्तन करने लगा हूं मै
हवा के उस झोंके का
दिखता नही एहसास कराता
अपने गर्म सर्द हो जाने का ।
चिन्तन करने लगा हूं मै
मृग की उस कस्तूरी का
ढूंढता फिरता है जिसको
मालिक खुद उस अद्भुत खुशबु का ।
चिन्तन करने लगा हूं मै
रचयिता है जो सृष्टि का
खेल बनाया कैसा उसने
हर जीव है भोजन इक दूजे का ।
राज विग