चिनगारी
पत्थर जितने होंगे
समुंदर के अंदर,
निश्चित ही हम जैसे
स्वरूप उनका होगा|
यह सोच सोच मानवता
बिलख रही प्रतिपल
यह मानव उन पत्थरों का गुरु रुपहोगा|
ठहरो ना भागो विकृत
समाज से दूर
इसे रोशनी दो अंधकार
दूर होगा जरूर|
बहुत कठिन कठिन पल
देखे हैं मानवता ने,
पर एक सत्य की चिनगारी
पडी़ है भारी सभी पर
अंधेरे दूर होने को हुए हैं मजबूर|
डा पूनम श्रीवास्तव वाणी