चित्र आधारित दो कुंडलियाँ
कुंडलिया-१ (गौपालक)
गौपालक है चल पड़ा, गौचारण के साथ।
तीन ढोलचा सिर धरे, एक पकड़कर हाथ।।
एक पकड़कर हाथ, नगर को दौड़ा जाता।
घर का भी सामान, गाय को गुड़ है लाता।।
कह ‘बाबा’ मुस्काय, मगन हैं नारी बालक।
बहा दूध की धार, हुए पुलकित गौपालक।।
©दुष्यंत ‘बाबा’
कुंडलिया-२ (ग्वाला)
ग्वाला निकला शहर को, सिर पर धर कर कैन।
दूध दही व्यापार के, पाता कब वह चैन।।
पाता कब वह चैन, यही रोजी है उसकी।।
लाता चोकर चून, निकाले कीमत भुस की।।
कह ग्वाला दुष्यंत, कमीशन खाते लाला।
पाती सेवा गाय, दूध पनीर सब ग्वाला।।
©दुष्यंत ‘बाबा’
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