चित्रगुप्त का जगत भ्रमण….!
# चित्रगुप्त ने यम जी से कहा एक दिन ,
प्रभु मानवों के पास कुछ दिन के लिए जाना है…!
उनके पास कुछ पल बीताना है…!!
आज्ञा लेकर गुप्त जी , मानव लोक चला गया…
काम-काज मानव का , आंकलन करता गया…!
सम्पूर्ण जगत भ्रमण किया….
उनको बहुत आश्चर्य लगा , देखकर मानव क्रियाकलाप…
और अपने मन से किया कुछ वार्तालाप….!
” ये मानव भी बड़े ही अजीब है…
अप्रिय घटना के करीब है…! ”
” संजीव प्राणियों में बुद्धिजीवी कहलाता है….”
” कठिन से कठिन काम सरलता से कर जाता….!”
किसी काम-काज में फिर ,
सुरक्षा-नियम क्यों नहीं अपनाता है…
अपने आप दुर्घटना का, शिकार हो जाता है…!
और मेरे प्रभु..! को, सारा दोष दे जाता है…
आधुनिकता में जीता है…
फिर आधुनिक सुरक्षा-यंत्र उपयोग में,
क्यों नहीं लाता है….?
# भ्रमण करता हुआ…
चतुर्चक्र वाहिनी (कार) में ;
एक चिकित्सक नज़र आया…!
१०० किमी/घंटा की द्रूतगति में, उसको पाया…!!
सादर भाव..! से गुप्त जी ने, उनसे पूछा ;
” महानुभाव , आप एक चिकित्सक हो… ”
” मरीजों के भगवान और उनके रक्षक हो…! ”
” फिर सुरक्षा-पट्टी , क्यों नहीं लगाते हो…”
और ” पवन-वेग से गाड़ी भगाते हो….!”
मान्यवर..!
चिकित्सक अनुत्तरित हो गया…
और अपने विचारों में खो गया…!
# गुप्त जी भ्रमण पर आगे चल पड़ा…
” द्वि-चक्रीका वाहन (मोटरसाइकिल) पर,
एक वकील नजर आया…!
द्रुतगति में उसको भी पाया…!! ”
पुनः गुप्त जी ने पूछा उनसे,
” महोदय..! आप एक वकील हो….”
” दुर्घटना-ग्रसित , अपने मुवक्किल की,
वकालत करते हो….!”
” फिर भी सुरक्षा-कवच (हेलमेट),
क्यों नहीं लगाते हो…? ”
” द्रुतगति में द्रुतगमी,
स्वयं नजर आते हो…!”
श्रीमान् वकील भी, निरुत्तर हो गए…
और पसीने से तर-बतर हो गए…!
# भ्रमण करता हुआ, गुप्त जी और आगे चल पड़ा…
” एक औद्योगिक प्रतिष्ठान में ( फैक्ट्री),
कुछ यंत्री और सहकर्मी कामगार ,
उनके दृष्टि में आया…! ”
सुरक्षा-साधन किसी के पास भी ,
नजर नहीं आया…!!
विनम्र भाव से गुप्त जी ने उनसे पूछा,
” आप सब यात्रिंक-जगत के शिल्पी ,
और आधार स्तंभ हो…! ”
” आप से ही यांत्रिक संकल्पना और नव-निर्माण है… ”
और ” सुरक्षा-साधन क्यों नहीं अपनाते हो…!”
” अनचाहे अप्रतिम घटना को आमंत्रण दे जाते हो…!!”
सभी मुक-बधीर व अनुत्तरित रहे…
और विचारों से विचलित रहे…!
# संध्या-समाचार ” जनचेतना ” में ,
एक ख़बर आया….!
” रामू भाई ने अपना दोनों हाथ कटाया…..। ”
” वकील साहब को घायल ”
और ” चिकित्सक महानुभाव…! ,
’ गहन उपचार कक्ष ‘ में
भर्ती है बताया….! ”
हाल-बेहाल देखकर,
चित्रगुप्त जी ने एक जनसभा बुलाया…!
जिंदगी जीने का एक पहल बताया…
तीनों दुर्घटना से अवगत कराया…!
” हे मानव तुम मन से नेक और बहुत ही कर्मठ हो…! ”
” ये स्वर्ग जैसा जगत तुम्हारे हैं…”
” यहां आने को यमराज जी क्या..? ,
प्रभु भगवन् भी तरस जाते हैं…!”
” जीवन है तो आज और कल है…”
” हरपल सुख-शांति का पल है…!”
” सुखी का जीवन बीताओ… ”
” सुरक्षा पर ध्यान लगाओ…! ”
हे मित्रों , यह मेरा ही नहीं ,
चित्रगुप्त जी का सुझाव है।
और। अपने जिंदगी का बचाव है।
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