चित्त में जो शेर है
टहलते बादलों का सौंदर्य
टकराव से उत्पन्न गर्जना
बादलों की गड़गड़ाहट
तीव्र गर्जना के साथ अर्चना
छुपी है इसमें भी संरचना
मन विक्षुब्ध लुप्त तृष्णा
छोड़ ना दे कहीं हृदय धड़कना
खौफ का माहौल इसे मत कहना
यही तो नृत्य है, बात जरा समझना
जिह्वा का काम है चखना
समझ लेना बस इसे एक घटना
कानों ने सुनी जो वेदना
उसी को तुम भेद देना
फिर जो है, वो है, नहीं वो नहीं है,
सत् पथ पर बस आगे बढ़ते रहना,
किसी से क्या कहना, क्या सुनना
जो दिखाई दे, उसे एक क्षण देखना
जो हिंसक है उससे सात्विक उम्मीद
चित्त में शेर है, वो बुद्ध है,वो बुद्ध है.