चित्त-मन
कितना अद्भुत यंत्र है,
न कोई षड्यंत्र है,
न अस्त्र है न शस्त्र है,
धारण किए न वस्त्र है,
तीव्र गति सी चाल है ,
न पुष्पक विमान है,
चंचल लगती काया इसकी,
क्षुधा अपरंपार है ,
सागर सा भंडार हैं ,
छल की है यह माया,
भ्रम का यह जाल है ,
बना देह का श्रृंगार है,
प्रश्न चिन्ह का तिलक है ,
हृदय में छिपा दीमक है ,
इंसानों का मस्तिक से हरे,
शूरवीर भी मात हुए ,
बल पर नहीं,
छल पर नहीं ,
तन का कोई वश नहीं,
संयम से ध्यान कर ,
एकाग्र चित्त विलीन हुए ,
मुक्ति का द्वार खुले ,
सुख वैभव का संसार बसे।
**बुद्ध प्रकाश,
**मौदहा हमीरपुर!