चित्त चोर
चांद को देख मुझे याद आया मेरा चित चोर ।
हाय , कभी चिढ़ाती थी मैं इसको आज चिढ़ाता है यह मुझे।।
कभी कहती थी मैं इसको छुप जा रे जरा बदरी में।
देख लेने दे मुझे मेरे प्रियतम को अंधेरी में।
हाय, तभी भी बना ये मेरा बेरी ।
छुपा ना ये तो बदरी में।।
हाय, रहीं प्रीतम के दरस की प्यासी ये अंखियां।
उठ ना सकीं ये तो दरस कों उजियारी में ।।
चांद को देख मुझे याद आया मेरा चित्त चोर।
हाय बहती अब है उल्टी गंगा ।
कहती हूं अब मैं इसको को ना जा रे तू अब बदरी में।
देख लेने दे मुझे अब प्रियतम को तेरे ही मुखड़े में ।
हाय, तब भी बना ये मेरा बेरी ।
अब भी बना ये मेरा बेरी।।
कभी चिढ़ाती थी मैं इसको आज चिढ़ाता है यह मुझे।
अपने रूप रंग पर है इसे बड़ा अभिमान ।
हाय,जाने ना ये तो मेरे प्रेम का मान ।
तार रूप पर करें ये अभिमान ता में बड़े-बड़े दाग।
मेरा प्रेम निर्मल गंगा सा ता में छुटे हृदय के दाग।
चांद को देख मुझे याद आया मेरा चित्त चोर।
हाय कभी चिढ़ाती थी मैं जिसको आज चिढ़ाता है ये मुझे।।