*चिड़ियों को जल दाना डाल रहा है वो*
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चिड़ियों को जल दाना डाल रहा है वो।
उन्हें फंसाने को बिछा,जाल रहा है वो।
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नए ज़माने का इश्क, फरमा रहा है वो,
अरे ! इश्क में भी चल चाल रहा है वो।
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वो समझे कि हम भी मोहब्बत करते हैं,
खुशफहमी है उसे, जो पाल रहा है वो।
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उसे फुर्सत नहीं है, मेरी बात सुनने को,
मेरी कही हर बात को, टाल रहा है वो।
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हर बार हम ही आए, उसके झांसे में,
शातिर शिकारी बाकमाल! रहा है वो।
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जबाव था मेरे पास उसके सवाल का,
मेरे सवाल पर, खुद सवाल रहा है वो।
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सुधीर कुमार
सरहिंद फतेहगढ़ साहिब पंजाब।