चिड़िया
एक चिड़िया चहकती
गुनगुनाती डाल पर
श्वास भर उड़ती गगन में
खुशी थी अपने हाल पर
पर, खुशी का क्या ठिकाना
पल दो पल का है फ़साना ।
एक शिकारी की नजर
आकर टिकी मासूम पर
वह बेचारी बेखबर-सी
उड़ रही थी झूमकर
तीर पैना एक चला
जो हड्डियों में जा धँसा
प्राण आधे रह गए
कंठ में दाना फँसा…
हाय तूने क्या किया !
एक जिंदगी की लौ बुझा दी
दोष उसका क्या था बोलो
क्यों उसे इतनी सजा दी
क्यों उसे इतनी सजा दी…?
(मोहिनी तिवारी)