“चिट्ठी ना कोई संदेश”
“चिट्ठी ना कोई संदेश”
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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दोस्त तो अनगिनत
इस रंगमंच से जुड़े हुये हैं
उनकी तस्वीरें विभिन्य भंगिमाओं
वाली रंगमहल के दीवारों
पर लटकीं हुईं हैं
तस्वीरें बदलती रहती हैं
चहरें बदल जाते हैं
बातें ,परिचय ,संवाद और आत्मीयता
से नहीं जुड़ पाते हैं
सब के सब एक दूसरे से
अंजान हैं
मैं चाहता हूँ हर दिन हरेक
मित्र को एक ख़त लिखूँ
उनको मैं जानू , वे मुझे पहचाने
और मैं अक्सर ख़त लिखता भी हूँ
लोगों ने तो अपने टाइमलाइन
को आउट ऑफ बौंड
बना रखा है
वहाँ मैं लिख नहीं सकता
जितने भी श्रेष्ठ ,समतुल्य और कनिष्ठ
मेरे दोस्त बने
उन सब को उनके मेसेजर पर
पत्र लिखा, परिचय लिखा
पर सब बेकार गया
बिरले ही किसी ने कुछ अधूरा लिखा
अधिकाशतः लोग मौन रहा करते हैं
किसी ने तो वर्षों तक
मेसेजर को देखा नहीं और ना पढ़ा उसको
कई लोगों ने तो
उसे बंद करके छोड़ दिया है
बात करने का सुअवसर
कुछ हद तक जन्मदिन,सालगिरह और
सामाजिक कार्यों के क्षण
बधाई के साथ बातें कुछ भी हो सकती हैं
पर इन्हें इसकी परवाह कहाँ
थैंक्स यू , लाइक और अपने अंगूठे
दिखा देते हैं
हम सम्पूर्ण संसार से जुड़ना चाहते हैं
पर “चिट्ठी ना कोई संदेश”
अकेले गुनगुनाके रह जाते हैं !!
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका ,झारखंड
भारत
17.06.2024