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18 Jan 2017 · 1 min read

चिट्ठी आई बेटे की

चिट्ठी आई बेटे की

तुम्हारे जाने के बाद
हर दिन खिड़की से बाहर तकाते
उम्मीदों की आश लगाये
मायूस होकर अब गुमशुम से
खिड़की से पर्दा नहीं हटाते

बहुत दिनों बाद
खिड़की से पर्दा हटाया
तुमने लिफ़ाफ़े में जो चिट्ठी भेजी थी,
वो खिड़की के बाहर पड़ी थी,,
बारिशों में गुलज़ार हो चुकी थी

रेखाओं से टहनिया फूट चुकी थीं,
और आधे धुले शब्दों से
फूल निकल आये थें.
उनपर बहुत सारी तितलियाँ बैठी थी,
जो तुम्हारी हंसी सी कमरे में होती थीं

बारिश से भीगे शब्दों के फूलों पे
चुलबुली तितलियाँ मंडराने लगी
गिड़गिड़ाते,मेरे आसपास,
यादों के शूल चुभाने,
भीगी हुई चिट्ठी से निकली थी

मैंने वो चिट्टी रख ली है
बिस्तर के तले;
फिर पर्दा ड़ाल देता हूँ
और कोशिश करता सोने की
पर अब तकिया मेरा भीगा है

सजन

Language: Hindi
406 Views

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