चिकने घड़े
तीरे पर तीर चलाते है जहरीले ,
मगर घायल तो कोई होता नहीं ।
हादसों पर अफसोस का सिलसिला ,
शर्म तो किसी को फिर भी आती नहीं।
अजी! छोड़िए भी इतने ही गैरत मंद होते,
ऐसी निम्न दर्जे की सियासत वो ,
कभी करते ही नहीं ।
न यह घायल होते है न इन्हें शर्म आती है ,
भगवान जाने किस मिट्टी के बने हैं ,
सच मानो चिकने घड़े हैं यह ,
इंसान तो यह सियासत दान है ही नहीं।