चिंता
मेरे रोने से
ज़मीन फटती है
हँसने से आसमान
समझ नही आता
कहाँ से लाऊँ
अपने लिए
दूसरा जहान ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 09/05/91 )
मेरे रोने से
ज़मीन फटती है
हँसने से आसमान
समझ नही आता
कहाँ से लाऊँ
अपने लिए
दूसरा जहान ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 09/05/91 )