चिंता दूर हुई
घर में खुशी का माहौल था , सतीश की बैंक में नौकरी लग गयी थी लेकिन नियुक्ति उसे नागपुर में मिली थी । रमा देवी यह सोच कर परेशान थी कि सतीश वहाँ खाने की क्या व्यवस्था करेगा क्यो कि अभी तक उसे घर का खाना ही मिलता था ।
सतीश ने नागपुर जा कर ज्वाईन कर लिया और एक कमरा ले कर , खुद ही खाना बनाने लगा । कुछ दिनों बाद रमादेवी, सतीश से मिलने नागपुर आई ।
वह थक गयी थी इसलिए सो गयी । बैंक बंद होने के बाद सतीश घर आया , माँ ने दरवाजा खोला और फिर लेट गयी । इस बीच सतीश किचिन में गया और दाल, रोटी , सब्जी बना कर तैयार कर ली । इसके बाद उसने माँ को जगाया । माँ हडबडा कर उठी उसे अभी खाना भी बनाना था लेकिन माँ जब किचिन में गयी सब तैयार था । माँ ने सोचा :”कोई खाना बनाने वाली रखी होगी जो बना कर गयी है ।”
सतीश ने बताया :”माँ खाना मैने ही बनाया है ।”
तब माँ आश्चर्य से उसे देखने लगी और बोली :
” बेटा सब्जी तो बनाना ठीक है लेकिन रोटी का आटा गूंथना और बनाना बहुत मुश्किल है यह तूने कहाँ से सीखा ?”
तब सतीश ने बताया :
” माँ यह तो घर में संस्कारों का नतीजा है , पूजा पाठ और शनिवार को मंदिर में आटे का दीपक लगाने के लिए मैं आटे गूंथता था , शुरू में जरूर थोड़ी परेशानी आई लेकिन बाद में अच्छे से गूथने लगा और बीच बीच जब आप मामा के घर जाती थी तब रोटी भी बनाने लगा था, उसी नतीजा है कि मुझे कोई परेशानी नही हुई ।”
रमादेवी ने चैन की सांस ली कि :
“और सोचने लगी भारतीय संस्कृति में हर पूजा पाठ का महत्व होता है दीपक बाती हवन आरती से जहाँ मन को शांति मिलती है वहीँ घरेलू काम की बातें भी सीखने को मिलती है साथ ही सतीश अब जहाँ भी रहेगा , अपने हाथ का बना खाना खाऐगा । ”
और उनकी चिंता खत्म हो गयी ।
स्वलिखित लेखक
संतोष श्रीवास्तव भोपाल