चिंता डायन!
जाने कब से आकर मुझमें,
रच बस गई ये चिंता डायन,
थोड़ी सी भी कोई बात हो जाए,
सताने लगती है चिंता डायन!
जब तक मैं इससे,
ना हुआ था रुबरु,
निश्चिंत होकर रहता था,
हर प्रकार से सुख भरा था,
जब तक ना आई थी ये चिंता,
जब से आई है ये चिंता डायन,
मुझे डराती आई है!
जब से आई ये चिंता डायन,
मेरे मन मस्तिष्क में समाई है,
घुल मिल गई है,
यह स्वांस में,
हर धड़कन में,
हर कदम पर,
हर काम में,
दिलो दिमाग पर छाई है,
जब से ये चिंता डायन आई है,
मुझे रुलाती आई है !
जब भी मैं आगे बढ़ने लगता,
आगाह मुझे कर जाती है,
तुझसे हो सकेगा ना यह,
कदम मेरे ठिठकाती है,
कैसे होगा उद्देश्य मेरा पूरा,,
ये आकर मुझे डिगाती है!
सब कुछ छीन लिया है इसने,
सुकून, चैन,
विश्वास,आत्म विश्वास,
अब तो मान सम्मान पर भी बन आई है,
कैसे होऊं मैं मुक्त भी इससे,
यह मुझमें आ समाई है,
डेरा डाले बैठी है मुझमें,
जब से ये चिंता डायन आई है,
अब तो अपनी जान पर आई है,
जाने कब से आकर मुझमें,
ये चिंता डायन समाई है,
जब से ये चिंता डायन आई है!!