चिंता क्यों हो रही है ?
लाईन में हम तो कल भी लगे थे,
आज भी लगे हैं,
और पूर्व की भाँति,
चंद लब्धि पाकर प्रफुल्लित हूँ,
पर आज उन्हें चिंता क्यों है ?
दिक्कतों का तो हमने किये हैं कई सामना,
नियति हमारी बन गई है करना संघर्ष,
हमने तो पहले भी कष्ट सहे हैं,
तब तो उन्हें चिंता नहीं हुई,
पर आज उन्हें चिंता क्यों है ?
हमें तो लाईन लगने की आदत है,
पहले भी तो लगे हैं,
ए.टी.एम., बैंकों और सरकारी दुकानों पर,
तब भी हमने झेले कई कष्टें,
तब तो उन्हें चिंता नहीं हुई,
पर आज उन्हें चिंता क्यों है ?
धार्मिक स्थलों पर भी लाईन लगा,
भगदड़ में हम कुचलेे गये,
घायल हुए, मारे भी गये,
तब तो उन्हें चिंता नहीं हुई,
पर आज उन्हें चिंता क्यों है ?
हमने कई बार सहे हैं कष्ट,
कितना सुनाउं दास्तान,
हमें तो परेशानियां झेलने की आदत हो गई है,
कभी भी उन्हें चिंता नहीं हुई,
पर आज उन्हें चिंता क्यों है ?
हम अपने लिए कष्ट सहते आये हैं,
अवसर मिला है राष्ट्र के लिए सहेगें,
कालाधन पर जब प्रहार हो गई है,
तब आज उन्हें चिंता क्यों है ?
चेहरे हो गये हैं उनके बेनकाब,
नोटबंदी से उनके मंसूबे हो गये हैं नाकाम,
काले चेहरे को ढकने को मांग रहे हैं अवसर,
समझ गये हैं हम,
आज उन्हें चिंता क्यों हो रही है ?
———— मनहरण