चिंता और चिंतन
मुक्तामणि छंद
चिंता की चिंगारियाँ,मन को नित सुलगाएँ।
चिंता की हर गाँठ को,कब तक हम सुलझाएँ ?
बिन जल ही फूले-फले,चिंता की फुलवारी।
चंचल मन हर पल करे,चिंताओं से यारी।
संत कहें चिंता नहीं,चिंतन से कर यारी।
कथा-श्रवण सत्संग से,धीरज मिलता भारी।
चालीसा-हनुमान का,पाठ करो नित मन से।
हर लेंगें हनुमान जी,हर चिंता चित-मन से।
ललित किशोर ‘ललित’