**** चिंतन
आज लोगों में चिंतन की जरूरत हैं।
नई पहल, नेक विचार की जरूरत हैं ।।
संकीर्ण मानसिकता, कुंठित विचार,
लोगों में कुचक्र का जाल।
फैला हुआ है चहुंओर,
निगलता जा रहा दिन-रात।।
मानवता का कही नाम नही,
हृदय में करूणा, दया भाव नहीं।
वसुधैव कुटुंबकम् की बात नहीं,
सहज,सरल जीवन का पर्याय नहीं।।
कशमकश में जीये जा रहे हैं,
अपनों से बेगाने हुए जा रहे हैं।
दरमियान बढ़ाये जा रहे हैं,
आखिर क्यों?
क्या कल्पित मात्र ही रह जायेगा,
मानवता, वसुधैव कुटुंबकम् की बात।
कब साकार होगा मन, कर्म, वचन से,
लोगों में सुधार?
समस्या बहुत हैं मगर,
समाधान नजर नहीं आता हैं।
प्रश्न बहुत हैं मगर,
उत्तर नजर नहीं आता हैं।
आखिर क्यों?
आज लोगों में चिंतन की जरूरत हैं।
नई पहल, नेक विचार की जरूरत हैं।।