चिंतन की दिशा
चिंतन की दिशा ।
हम सब मानव प्राणी जितने सामाजिक माने जाते हैं उतने ही विचारशील भी।
सोचते तो सभी है पर क्या सोचना है कैसे सोचना है यह हम अबतक नही सीख पाते है।
यह कम सोचनीय नही है।
सर्वविदित है कि सोच मौलिक रूप से दो प्रकार की होती है सकारात्मक तथा नकारात्मक । दोनो मे हमारा श्रम समय जाया होता है। पर किसी से हमें कोई निष्कर्ष हल निकलता है ।पर नकारात्मक चिंतन से कुछ हासिल नही होता ।हमें समय समय पर सही उम्र सही समय पर यह जानने की जरूरत होती है कि हम अपनी मेधा शक्ति का उपयोग कहाँ करे।यदि सही दिशा में हम नही चिंतन करते तो चिंता का सबब बनता है।
सच बात तो यह भी है चिंता किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता वह तो समस्या वर्धक है। चिंतन एक सही सृजनात्मक क्रिया है जिसक परिणाम नवीन उत्पादन करने वाला होता है।अपने को जानने के लिए एकाग्रता के साथ चिंतन की आवश्यकता होती हैं यह बहु इंद्रिय के साथ साथ सभी शक्तियों का एक ही स्थान पर केन्द्रीय करण है।
सोचे पर सोचकर कि क्या चिंतन करना है।
चिंतन प्राचीन काल से प्रचलित है जब हमे किसी विषय में जानना है तो हम अपने सूझ द्वारा भी चिंतन कर नवीन परिस्थितियों का ज्ञान होता है ।
यह कहना प्रासंगिक होगा कि आजकल तरह तरह के अफवाह तेजी से फैल रही है ।संचार क्रांति के साथ साथ अफवाहों का बाजार गर्म हो रहा है ।आश्चर्य की बात जितनी अधिक साक्षरता बढ रही है। लोगों को बहकाना आसान हो रहा है । कोई दंगा लडाई के पीछे अपना हित साध रहा है। बड़े बड़े लेख हमें सोशल मीडिया में पढने को मिलते है जिनके पीछे केवल उन्माद फैलाना है ।आश्चर्य की बात है कौन हैं जो केवल व्यर्थ चिंतन मे अपनी शक्ति जाया कर रहा है ।