चिंतन का विषय अशिक्षा की पीड़ा,, बेटा बचाओ
चिंतन का विषय,, अशिक्षा की पीड़ा ,,बेटा बचाओ, बेटा पढ़ाओ।
रचनाकार,, डॉ विजय कुमार कन्नौजे छत्तीसगढ़ रायपुर
दिनांक,,27/12/2023
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आज समाज में अत्यंत महत्वपूर्ण चिंतन का विषय है, दिनों दिन नशापान का दानव समाज को निगलते जा रहा है, मेरे देव तुल्य बच्चे इस बिमारी का ऐसा शिकार हो गया है जिसके कारण पुण: समाज में अशिक्षा की पीड़ा पनप रही है,
जिस होनहार बच्चों से हमें गर्व होता है,
आगामी भविष्य में भारत भूमि को, माता पिता को समाज गंगा को अपने अच्छे कार्यों से गौरवान्वित करेगा,पर नशा पान एवं विदेशी संस्कार के कारण हमारे देव तुल्य बच्चे अशिक्षा के पायदान पर खड़ा नजर आने लगा, संस्कार संस्कृति सभ्यता से दुर होते जा रहे हैं,इसका दोष हम किस पर मढ़े,
माता पिता का अधिक प्यार दुलार,या विदेशी संस्कार का परिणाम,
मेरा हृदय द्रवित हो जाता है कि हम पुनः भारतीय सभ्यता संस्कृति संस्कार को बच्चों में कैसे बीजरोपण करें, अनुशासन की कमी भी एक कारण लगता है, स्वयं माता-पिता ही अनुशासित नहीं रह पाते,जिसका प्रभाव बच्चों पर पड़ता है, किसी को अनुशासित करने के लिए स्वयं को अनुशासित रहना पड़ता है,जो दिनों दिन कमी होते जा रहा है,
मेरा जन जन से प्रार्थना है कि स्वयं अनुशासित रहकर बच्चों की पढ़ाई में विशेष ध्यान दें,आज हमारी बेटियां, अनुशासन का पालन करने के कारण उच्चासन को चढ़ रही हैं और बेटा अमर्यादित वातावरण के कारण
दसवीं बारहवीं पढ़कर पढ़ाई छो ड़ दे रहें हैं
और अब्यवहारिक कार्य की ओर बढ़ते जा रहे हैं, यदि हम सच्चा समाज सेवी या देश सेवी है तो हमें और कुछ करने की जरूरत नहीं है , केवल हर माता पिता अपने बच्चों को संस्कार संस्कृति सभ्यता सिखायें साथ ही उच्च शिक्षा दिलाएं।शुद्र से ब्राम्हण बनाइए।, समाज में अभी वर्तमान आंकड़ा बताता है की लड़कों की अपेक्षा लड़कीयों
की शिक्षा अधिक है,
अब बेटा बचाओ बेटा पढ़ाओ,यही समाज की ,और देश की असली सेवा है।
यदि यह लेख गलत लगे तो क्षमा प्रार्थी हूं,मैं अपना चिंतन प्रेषित किया।
मानवता मानवीय संस्कार संस्कृति सभ्यता
वसुधैव कुटुम्बकम् की जय, भारत माता की जय।।
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