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14 Nov 2019 · 1 min read

चिंगारी

कहना तो चाहता था बहुत पर कुछ कह ना सका। शायद हालातों ने मेरी जुबां पर ताले लगा दिए। बड़ी शिद्दत से जिसे संभाला था मैंने जिसे वह सब बिखरा बिखरा सा लगने लगा। बगावत करने का जुनून तो बहुत था मुझे मगर गुमसुम सा बैठा रहा । जो आग थी दिल में में कुछ बुझ सी गई शायद जुल्म सहने की मुझे आदत सी पड़ गई । कुफ्र का कहर इस कदर था कि खौफ के सायों मे रोशनी तलाश करने की कोशिश नाकाम होने लगी ।
रफ्ता रफ्ता अंधेरे गहरे होने लगे और आहिस्ता आहिस्ता मैं अपनी हस्ती खोने लगा। तभी एक रूहानी आवाज आई ऐ नाखुदा उठ अभी भी वक्त है संभल जा आवाज उठा। हालातों से लड़ कर अपनी हस्ती कायम कर । और करा दे एहसास जालिमों को कि अभी भी बुझी हुई राख में चिंगारी बाकी है। जो उनको नेस्तनाबूद करने के लिए काफी है।

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