चाॅक्लेट (बाल कविता)
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रंग-बिरंगी रैपर में लिपटी,
चाॅक्लेट भला किसे नहीं भाती।
नाना – नानी, दादा-दादी,
सबके मुँह में पानी लाती।
चाॅक्लेट देखकर जी ना माने।
खाते रहते कर-कर के बहाने।
बच्चे-बूढ़े, चाहे हो जवान
चाॅक्लेट के हैं सभी दिवाने।
प्रधान मंत्री हो या हो मुनिम,
चाॅक्लेट के हैं सब शौकिन।
उत्सव हो या हो जन्म दिन,
मुझे तो चाहिए चाॅक्लेट हर दिन।
मिल जाये मुझे चाॅक्लेट का भंडार,
फिर कुछ मुझे नहीं रहता याद।
देख चाॅक्लेट का दुकान,
करने लगती हूँ फरियाद।
तरह-तरह के चाॅक्लेट ढ़ेर सारी,
अंजीर, मैंगो, वेनिला, स्ट्राॅबेरी।
मै सिर्फ पसंदीदा चाॅक्लेट ही खाती,
चाहे मिल जाये छोटी या बड़ी।
मम्मी-पापा, बहन और भाई,
मैं जब रूठी चाॅक्लेट ले आई।
मुझे चाॅक्लेट फ्लेवर ही भाती,
चाहे कस्टर्ड, केक हो या मिठाई।
चाॅक्लेट तो बचपन से ही है,
मेरी बहुत बड़ी कमजोरी।
पर हेल्थकाॅन्शेस मेरी मम्मी
चाॅक्लेट से रखती है दूरी।
काश मेरे आँगन में होता,
चाॅक्लेट का एक बड़ा बगीचा।
तोड़ कर खाती मैं हरदम,
वह मेरा ही होता समूचा।
? ?? ? –लक्ष्मी सिंह ? ☺