-चाॅकलेटी खुशी
रागिनी सरकारी अध्यापिका थी। उसके घर मैं उसके सास-ससुर और जेठ -जेठानी उनके दो बच्चे व एक बेटी थी रागिनी और राघव की।
उसकी सास और ससुर को बहुओं को सूट-सलवार पहनना बिल्कुल पसंद नहीं था।
हमेशा साड़ी ही पहनो.. कभी तो साड़ी पहन कर स्कूटी चलाने में बहुत परेशानी आती थी।
बस दोनों बहुएं इस नियम का भी पालन करती।
रागिनी सुबह जल्दी उठ कर जितना जल्दी होता उतना अधिक काम कर जाती ताकि किसी को भी कुछ कहने सुनाने का मौका ना मिले।
अपना लंच और राघव का लंच भी लगा देती।
और स्कूटी से स्कूल चल पड़ती। वो
रागिनी को अपनी अपनी तनख्वाह अपनी सास को ही देनी पड़ती फिर सास के हाथ में ही होता कि रागिनी को उस मे से कितना रूपये मिले।
इस बात को लेकर रागिनी बहुत परेशान थी। लेकिन सास के गुस्से के आगे वो कुछ नहीं बोलती, लेकिन जब कभी अपने लिए बोलती तभी वो बातों का बतंगड़ बना देती। फिर उसे डर था कहीं नौकरी ना छोड़नी पड़े। क्योंकि सासु मां को रागिनी का नौकरी करना पसंद नहीं था।
पांच दिन बाद स्कूल में बड़ा सांस्कृतिक कार्यक्रम था सब अध्यापिकाओं को सूट-सलवार में आना था ।
डर था कि सास से कैसे पूछे। पर हिम्मत ही नहीं हुई।
उसने एक प्लान बनाया कि वो उस दिन घर से तो साड़ी पहन कर ही जाएगी लेकिन घर से थोड़ा जल्दी निकल कर अध्यापिका ममता के घर से साड़ी बदल स्कूल चली जाएगी।
यह विचार सोचती रागिनी काम में व्यस्त हो गई।
सुबह , जल्दी-जल्दी काम कर अपना एक सूट ,ईयर रिंग्स सब अपनी स्कूटी की डिक्की में रख चल पड़ीं, बहुत खुश ममता जी के घर पहुंच कर अपनी साड़ी बदल सूट-सलवार पहन दोनों स्कूल चल दी।
आज बरसों बाद रागिनी ने सूट-सलवार पहर कर स्कूटी चलाई तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
स्कूल में बहुत ही आनन्द रहा।
शाम को जब रागिनी घर के लिए स्कूल से वापिस चली तों वो ममता जी के घर सूट-सलवार को बदलना भूल गई।
अपने मदमस्त मग्न हो कर सीधी अपने घर आ गई।वो बहुत खुश थी जैसे तो ‘आज मायके वाले दिन फिर लौट आए’
लेकिन जैसे ही घर के पास पहुंची बाहर खड़ी सासु मां को देख उसे याद आया कि वो सूट-सलवार बदलना भूल गई और फोन भी पर्स में रखा था।ममता जी भी इस बात को बताने के लिए बार- बार फोन कर चुकी थी।
अब क्या!!!
सासु मां ने सारा घर आसमान पर उठा लिया।
रागिनी को भी कुछ बोलने का मौका भी नहीं दिया।
सहन करने की भी सीमा होती है।
रागिनी को भी गुस्सा आ गया। लेकिन फिर उसने अपनी धीमी आवाज में सब कुछ समझाने की कोशिश की लेकिन नाकाम रही।घर का माहौल भी बहुत बिगड़ गया।
रागिनी बिना खाए पिएं अपने कमरे आ गई।शाम को रागिनी के पति आॅफिस सेऔर जेठ दुकान से आए तो सासु मां फिर से वो ही सूट -सलवार का किस्सा लेकर बैठ गई।
रागिनी के पति मां के आगे तो बोलते नहीं पर…. हां उन्होंने रागिनी को प्यार से समझाया।पर अबकी बार रागिनी के बहुत बुरा लगा बार -बार उस बात को याद कर आंखों में आंसू ले आती सोचती “सासूमां आखिर मां क्यों नहीं बन पाती?”
इस बार तो राघव को भी अपनी पत्नी का दर्द समझ में आया।
वो वापिस मां के पास आया,,,
वहां पहले से ही रागिनी के जेठ प्यार से और नर्म बातों से अपनी मां को समझा रहे थे कि ” मां सूट -सलवार पहनने में क्या बुराई है मां आज कल पहले वाला वक्त नहीं है सब वक्त के साथ बदल जाते हैं मां आप भी बदल जाओ,,)रागिनी भी तो रानी( राघव कीबहन) जैसी है वो भी तो अपने ससुराल जयपुर में सब तरह की पोशाक पहनती हैं आप ने कभी उसको मना करा है?? उसकी सास भी तो उसको कभी मना नहीं करती है।देखो मां,, वो कितनी खुश हो सुखी भी।
मां आप अपनी बहु को भी अपनी बेटी की तरह समझो देखो आपको कितनी खुशी मिलेगी। रागिनी तो बहुत समझदार और मेहनती भी है ऐसी बहुत कहां मिलती है आज के जमाने में….
रागिनी के जेठ बिना रूके सहजता से अपनी मां को समझा रहे थे शायद मां को भी अब समझ में आया क्योंकि उनके दोनों पड़ोसियों की बहुएं बहुत काम चोर और कटुभाषी है जबकि मेरी तो दोनों बहुएं बहुत मृदभाषी है।
रागिनी की सासु मां बिना कुछ बोले रागिनी के कमरे में जाकर उससे माफी मांगती है-“रागिनी- बेटा मुझे माफ़ कर दे”
अब मैं तुझ पर कभी अपनी मनमर्जी नहीं थोपूगी। चल बेटा साथ बैठकर खाना खिला और खाते हैं। जो तुम्हें अच्छा लगे वो पहन कर कल से स्कूल जाना बेटा….
रागिनी सासुमां की आवाज सुनकर आंसू पोछती हुई मां के हाथों को अपने सिर पर रखती है,,,, मां आप माफी नहीं बस आशीर्वाद दो।
अपनी बहु को गले लगा कर पुचकारने लगी।
बाहर दरवाजे से सब जने देखकर हर्षित हो रहे थे।
प्यार से समझाने पर घर में खुशियां आ गई।
-सीमा गुप्ता अलवर (राजस्थान)