चाॅंद
चाँद निकला किसे देखने के लिए!
हो रही साज़िशें रोकने के लिये!!
गुफ़्तगू कर रहे हैं सितारे सभी!
रोशनी कम पड़ी भेजने के लिये!!
ज़िंदगी में यही बात सोचो ज़रा!
ता-उमर ये कहाँ सोचने के लिये!!
खूं-पसीने से घर को बनाया मगर!
आज मजबूर पर बेचने के लिये!!
बात कहता पते की मुसाफ़िर सुनो!
प्यार होता नहीं थोपने के लिये!!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र: 9034376051