चाह ;
कहा चाह मुझे मयखाने की
कहा प्यास भरे पैमाने की
सिर्फ वो बून्द आखरी दे देना
जो मेरा गला तर कर जाए
इतना न पिला ओ साक़ी मेरे
की होश में भी अब मैं न रहूँ
है चाह मुझे बस वो घूँट पिला
की यांदे दिल से बिसर जाए
ना मुझको दिखाना राहें कभी
उन मयकदो वाले अंजाने डगर
या ये भी बता दे निकले अगर
जो मयखाने से तो किधर जाए
कहा इश्क से बड़ा इसका नशा
वो बात रही करने की अदब
लड़खड़ाये “चिद्रूप” की कहि
मयकशी की शान न बिखर जाए
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २५/१०/२०१८ )