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27 Jan 2024 · 1 min read

चाह

मैंने कभी कुछ चाहा ही नहीं
ऐसा मुझे लगता रहा
और मन ना जाने
क्यूँ रोज़ थकता रहा

आँख खुली है या बंद
ये कौन बतला गया
ख़ुद को था आईना समझा
ख़ुद को ही ठगता रहा

चलो एक राह मिली
तुम तक पहुँचने की..
अब समझा,
हर मील का पत्थर
क्यूँ गिले शिकवे करता रहा

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