चाह है बस तेरे दरबार में आने की —आर के रस्तोगी
चाह नहीं अब कुछ खाने की |
चाह नहीं अब और कमाने की ||
चाह बस केवल प्रभु जी मेरी |
तेरे ही दरबार में बस आने की ||
चाह नहीं अब किसी खजाने की |
चाह नहीं अब मकान बनाने की ||
करो प्रभुजी आदेश तुम यम को |
मुझको अपने दरबार बुलाने की ||
हर चाह को मैंने त्याग दिया |
रिश्ते नातो को त्याग दिया ||
क्यों कर रहे हो प्रभुजी देरी ?
क्या मेर समय नहीं हुआ ||
कब होगा मिलन तुमसे मेरा ?
दिखता है चारो तरफ अँधेरा ||
क्यों नहीं तुम पास बुलाते ?
क्या कसूर है प्रभु अब मेरा ||
सुबह शाम तुझको याद करता |
फिर भी मेरा मन नहीं भरता ||
कैसे बिसराऊ मै अब तुझको |
क्यों नहीं बुलाने का आदेश करते ?
किसी चाह की कोई चाह नहीं |
अपनों से मिलने का मोह नहीं ||
चाह मोह को मैंने त्याग दिया |
फिर भी तुम मुझको बुलाते नहीं ||
गीत गाता हूँ तेरे सदा मै |
भजनों को भज लेता हूँ मै ||
मै से मै को निकाला मैंने |
आने को अब लालायित मै ||
आर के रस्तोगी
मो 9971006425