# चाह गई, चिंता मिटी #
दिल की बाते उतर गई,
कागज कलम के साथ से।
नहीं चाहते इसे हम कहना
उतर गई मेरे हाथ से।।
लिख दो यारों कागज पे सब,
दिल की गलियों कलियों का रस।
लेखनी को वक्ता,कागज को श्रोता हो जाने दो।
हमसफर की चाहत को बस,कागज में मिट जाने दो।
होगी पूरी कभी नहीं,तो ! जीवन कागज में लुट जाने दो।।
लेखनी होगी सच्ची साथी,
कागज होगी सुख शय्या।
उतार व्यथा को करुण सागर से,
सुख मिलेगा अरी! दैया ।
कागज को शमशान बनाओं,
मन की मर्म व्यथा की चिता बनाओ।
अतीत सुख स्मृति का शव लाओ,
कर प्रकट ज्वाला लेखनी से मोक्ष पाओं।।
ज्ञानीचोर
9001321438