चाह की चाह
चाह ही चाह में चाहने हम लगे,
चाह मिलती गई चाह पीते गए।
घर से निकले थे हम चाह की चाह में,
राह मिलती गई चाह पीते गए,
फिर मिले वो मुझे इक हंसी राह पर,
आगे वाले चौराहे की दुकान पर,
बात चलती रही, रात होती रही,
चाह बनती रही चाह पीते रहें।
बात ही बात में चाहने हम लगें,
बात बढ़ती गई चाह पीते गए।
© बदनाम बनारसी