चाहे जितनी देर लगे
कण-कण का कल्याण करे,
रोम-रोम में होता है बसा,
ऐसी है निराकार की कथा,
देता है वह अंत में स्वतः,
करता है जो भक्ति सदा।
चाहे जितनी देर लगे……।।
मन में वह यदि रमता है,
ह्रदय में जब भी बसता है,
ओठों से जो नाम है जापे,
हाथोंं से जो करें सेवा,
रखता है वह ध्यान सदा।
चाहे जितनी देर लगे……।।
करता है वह अपनी कृपा,
चलता है वह संग सदा,
याद करें जो हर पल उसकी,
बाँटे है जो ज्ञान उसकी,
करता है उसका ही भला।
चाहे जितनी देर लगे……।।
रूप न उसका कोई जाने,
आँखों से कोई न पहचाने,।
वो तो खोजे प्रेम का सागर,
प्रेम की नदिया मिलती जहाँ आकर,
भरता है जो प्रेम का गागर ।
चाहे जितनी देर लगे।……।।
आँसू देख वहीं है पोछे,
जिसका आँसू कोई न पोछे,
कैसे रोने देगा भक्तों को,
श्रद्धा से पाया है उनको,
मिलन तो होना है एक रोज।
चाहे जितनी देर लगे……..।।
रचनाकार ✍🏼
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।