चाहें ये अब्सार
चाहें ये अब्सार खुले न खुले, एक ही बात है
इनमें कोई नजर, आये न आये, एक ही बात है
मैं दो को देख लूँ या जहान् को देख लूँ
कोई छली है, मुझमें या तुझमें, एक ही बात है
कोई मज़ार और काबा-ए-मस्जिद या आलम
को ख़ियाबां, कहें न कहे, एक ही बात है
चढ़ने लगी है सोहलियत की दर, धड़कन जब से
कि चीख निकली दो जान में या एक सीने से, एक ही बात है
कटघरे की आवाजाही, हक माँगती किस्मत की अदालत में
तकदीर हुई पागल, कोई मानें, न माने, एक ही बात हैैै
मेरी उदासी का ख्याल रख फैसलेदार, चाहें चेहरा तेरा बेनकाब
मेरे उम्र ये आशुफ़्ता, करे न करे, एक ही बात है
किस अंदाजें बयां करूँॽ किसके बूते पर कहूँ मैंॽ
जिसका इत्तिका ढह गया, वो गिरे न गिरे, एक ही बात है
समझने दो, ये राहत मिलना कोई फरेब की बात नहीं
मगर तुम हमेशा, भुले, भटके या बहके, एक ही बात है
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जिन्दगी की क़दर बड़ी चीज है, बेमौत मरने वाले
वरना उम्र-दराज़ हो, न हुए, एक ही बात है
अब़्सार= आंख, ख़ियाबां= फूल की क्यारी
आशुफ़्ता= बोखलाहट, इत्तिका= सहारा
-शिवम राव मणि