चाहत
नजरों से ओझल हो पर आँखों में छाई रहती है
ऐसा लगता है हमारा रिश्ता जन्मों जन्मांतर है
नजरें मिलाता हूँ तो नजर झुका लेती हो तुम
कुछ कहता चाहता हूँ तो मुस्कुरा देती हो तुम
ऐसा लगे जैसे तुझे मुझ से प्यार होने लगा है
ऐसा……………………………………………
कहने को बहुत कुछ है पर ना कुछ पाता हूँ मैं
तेरे ख्यालों में दुनियाँ को भी भूल जाता हूँ मैं
दीप जीवन का चाहत में तेरी जग सा गया है
ऐसा…………………… ……………………….
तिनका हूँ राहों का उड़ा संग ले चलो तुम मुझे
आशिक हूँ तरे ख्वाबों का बाहों में समा लो मुझे
आशियाना प्यार का यहाँ तेरे साथ जुड़ गया है
ऐसा…………………………………………….
मेरा जीवन कोरा कागज सा बन गया है बिन तुम
नयनों के काजल से कविता प्रेम की लिख दो तुम
ऐसा लगे कारवाँ प्रेम का तुझ संग जुड़ सा गया है
ऐसा……………………………………………….
नजरों से ओझल हो पर आँखों में छाई रहती है
ऐसा लगता है हमारा रिश्ता जन्मों जन्मांतर है
सुखविंद्र सिंह मनसीरत