चाहत
चाहतों के बाजार में चाहतों की भरमार है
एक पूरा हो न दुसरा तैयार है
दिल कह भी दे सही ,दिमाग कहता रुको अभी
तुम तो नादान हो, होते हो सही कभी-कभी
जांच परख की कला मुझमें है तू तो ठहरा मनचला
अक्सर चोट खाना आंसू बहाना तेरी फितरत बन गयी
उलझनों में रहना संघर्ष करना यही तेरी किस्मत बन गयी
मैं तो सोचता हूँ समझता हूँ ऊच-नीच के तराजू में तौलता हूँ
नफा नुकसान की गणित लगाता तब जाकर ही कदम रखता हूँ
तू चाहत कितनी ही कर ले मैं अपने हिसाब से चाहत कहता हूँ
वो नादान है जो तेरी सुनते है और न मुझे चुनते है
फिर भी अफसोस जमाने में तेरे ज्यादा मेरे कम लोग रहते हैं
मैं भी मानता हूँ तुझमें रब और मुझमें केवल इंसान बसते है
इसलिए शायद तेरी चाहत अमर हो जाती और मेरी जुबां तक रह जाती है
इसलिए कहता हूँ चाहतों के बाजार में चाहतों की भरमार है
हर चाहत केवल दिल व दिमाग के बीच का व्यापार है
एक पूरा तो दुसरा तैयार है…
चाहतों के बाजार में चाहतों की भरमार है,….